क्या जन, क्या गण,
हर कण कण में !
भयावह रूप में,
जकड़ता जा रहा है!
कोई दूर इस संक्रमित रोग से बचा हुआ
(सवर्णों में गरीब नवयुवक )
तड़प रहा है, सिसक रहा है सोचता है…
काश !!
मैं भी इस रोग का रोगी बन जाता,
माथे पे तिलक, सिने पे सितारे,
हर वक्त गद्देदार सेज पे ही रह्ता !
लेकिन… ?
अन्त: मन, बाह्य मन से अधिक कुशाग्र,
धीरोदत्त, नवल!
सोचता है…
नहीं!! यह, इस विराट जन मानस को
अपने भयंकर डंक से घायल करेगा
अंतत: आत्महत्या ही एक सरल मार्ग होगा
कहता हुँ … सुनो
हे भारत के कर्णधारों
तुम इस संक्रमण को रोक लो
अन्यथा विविधता में एकता वाला
यह मधुर स्नेहसिक्त
सुसंपन्न राष्ट्र पुष्पित होने के पहले ही कुम्हला जायेगा
रोता है सिसकता है
अपने भाग्य को कोसता है
यह सवर्ण गरीब बाल मन
इस युवक की अन्त:मन की व्यथा को सम्झो कर्णधारों
वरना टुट कर बिखर जायेगा
राष्ट्र के नवयुवक वर्ग
आखीर क्यों यह मकड़जाल तुम फेंक रहे हो
इस सुसंपन्न राष्ट्र पर
क्या इसे कयामत के पहले ही गर्त्त में
गिरा दोगे
आखिर क्यूँ
जवाब दो कर्णधारों देश के..?
हमें उत्तर चाहिये !