मै जाग जाता हूँ एक लम्बी नींद से
अंगड़ा कर आखे मींचता हूँ एक बादल के फटने पर
जम्हा कर बिजली की कडकडाहट पर, चल देता हूँ मै
अचानक ही बदल जाता हूँ जैसे आसमान का रंग ऊपर
रुकता भी हूँ ठहरता भी, महसूस भी
ज़मीं से गीली मिटटी उठा कर सूंघ सकता हूँ उसकी उम्र अब
पता है मुझे धरती के घूमने का रुख
बखूबी समझता हूँ पेड़ो के शब्द, चिड़िया के सुर
मुझे मालूम है सड़के किस ओर जाती है, किस ओर से वापस आती है
रो सकता हूँ एक घोसले के बह जाने पर
खुश हूँ बकरी की मिमियाहट से,
मुझे चिंता है किसी बछड़े के वापस घर न आने की
घंटो देख सकता हूँ इक गुबरैले का धीमा सफ़र
मुझे मालूम है चाँद के हर एक धब्बे की वजह
मुट्ठी में भर कर हवा की खडखडाहट सुनता भी हूँ
की बस मै बह रहा हूँ अभी इस गीले सफ़र में..
मै जाग जाता हूँ इक लम्बी नींद से
जब बारिश होती है
सिप सिप सिप सिप!
अविनाश सिंह तोमर
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