छलना

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दृष्टि जहां तक जाती है
तू ही  नज़र आती है
पलकें बंद करते ही
तू मन में उतर जाती है
छवि है या कोई परी
जो आँख मिचौनी खेल रही
 दृष्टि से ओझल होते ही
मन  अस्थिर कर रही
है ऐसा क्या तुझ में विशेष
जग सूना सूना लगता है
जब तू नहीं होती
जीना दूभर होता है
अब तो सुनिश्चित करना होगा
तू सच में है

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