चोरी-छिपे ही मोहब्बत निभाता रहा | सलिल सरोज

  • Post author:Udaan Hindi
Salil 3
वो गया दफ़अतन कई बार मुझे छोड़के 
पर लौट कर फिर मुझ में ही आता रहा 
कुछ तो मजबूरियाँ थी उसकी अपनी भी
पर चोरी-छिपे ही मोहब्बत  निभाता रहा 
कई सावन से तो वो भी बेइंतान प्यासा है 
आँखों के इशारों से ही प्यास बुझाता रहा 
पुराने खतों के कुछ टुकड़े ही सही,पर 
मुझे भेज कर अपना हक़ जताता रहा 
शमा की तरह जलना उसकी फिदरत थी 
पर मेरी सूनी मंज़िल को राह दिखाता रहा 

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