क्षितिज पे ही सही दो होंठों को सी लेने दो | सरोज सलिल

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कल पूर्णिमा थी, चाँद रात भर जगा होगा

सूरज की गोद में कुछ देर तो सो लेने दो  1 
हवा जो सोया हुआ है, सफर का थका है
पहली बारिश की दो बूंदों को पी लेने दो   2  
ये तपिश, ये ठिठुरन सभी तो हरजाई  हैं 
मरहूम  फ़िज़ा को थोड़ी देर जी लेने दो  3  
बहुत फासले हैं ज़मीं-आसमां के दरम्यान
क्षितिज पे ही सही दो होंठों को सी लेने दो  4
सारी अदीकतें इंसानों ने ज़ब्त कर रखी है

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