
कल पूर्णिमा थी, चाँद रात भर जगा होगा
सूरज की गोद में कुछ देर तो सो लेने दो 1
हवा जो सोया हुआ है, सफर का थका है
पहली बारिश की दो बूंदों को पी लेने दो 2
ये तपिश, ये ठिठुरन सभी तो हरजाई हैं
मरहूम फ़िज़ा को थोड़ी देर जी लेने दो 3
बहुत फासले हैं ज़मीं-आसमां के दरम्यान
क्षितिज पे ही सही दो होंठों को सी लेने दो 4
सारी अदीकतें इंसानों ने ज़ब्त कर रखी है
थोड़ी बहुत साँस तो शज़र को भी लेने दो 5
लेखक सलिल सरोज के बारे में संक्षिप्त जानकारी के लिए क्लिक करें।
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