एक बेहतर समाज की कोशिश

  • Post author:Web Editor

जब भी औरतों के लिए समानता या स्वतंत्रता की बात होती है, भारतीय पुरुषों का तर्क होता है- हमारे यहाँ तो पहले से ही औरतों का बड़ा सम्मान है। हमारे यहाँ तो औरतों को देवी माना जाता है। हमें पश्चिम की तरह बनने की जरूरत नहीं. देखो अमेरिका की संस्कृति। वहाँ औरतों को आजादी मिली तो कैसे घर टूटने लगे। तलाक के केसेज बढ़ने लगे। उसके बाद वो तर्क देंगे अमेरिका में भारत से कहीं ज्यादा रेप केसेज होते हैं। वहाँ औरतों के खिलाफ यौन-हिंसा के मामले भारत से बहुत अधिक हैं।
तो भाई अमेरिका में यौन-हिंसा के मामले इसलिए ज्यादा होते हैं क्योंकि वहाँ यौन-हिंसा की परिभाषा बहुत व्यापक है। वहाँ की औरतें चुप नहीं रहतीं, विरोध करती हैं, वहाँ की पुलिस एफ.आई.आर. दर्ज करवाने में आनाकानी नहीं करती और वहाँ के न्यायालय निर्णय देने में इतनी देर नहीं लगाते और इस सबसे बढ़कर वहाँ का समाज यौन-हिंसा के लिए औरतों को जिम्मेदार नहीं मानता। इसलिए औरतें भी अपने विरुद्ध अपराध को छिपाती नहीं हैं।
और फिर औरतों ने कब कहा कि उन्हें पश्चिम की तरह आजादी चाहिए। अरे आजादी तो हमारे संविधान ने हमें दी हुई है। किसी को उसे हमें देने की जरूरत नहीं है। बस एक सुरक्षित माहौल चाहिए, जिसमें हम उस आजादी का उपयोग कर सकें और वो माहौल न अकेले पुलिस बना सकती है, न न्यायालय न सरकार और न समाज…सबको मिलकर बेहतर समाज बनाना होगा।
आप फिर तर्क देंगे कि एक आदर्श समाज कैसे बन सकता है। अपराध तो तब भी होंगे। ये तो हम भी जानते हैं कि अपराधमुक्त समाज की कल्पना ‘यूटोपिया’ से बढ़कर कुछ नहीं है। अपराधी हर युग में रहे हैं और आगे भी रहेंगे। पर कुछ ऐसी बातें हैं, जिन पर ध्यान दिया जाय तो न सिर्फ अपराध कम होंगे, बल्कि अपराध होने पर औरतें उसकी शिकायत दर्ज कराने से डरेंगी नहीं।
पहली बात तो ये है कि अपराधियों के अन्दर कानून-व्यवस्था का डर होना चाहिए और ये तभी होगा, जब पुलिस अपना काम ठीक से करेगी। यहाँ तो ये हाल हैं कि छेड़छाड़ की रिपोर्ट करवाने जाने पर पुलिस ही समझाने लगती है कि जाने दो कौन सी इतनी बड़ी बात है। कहीं-कहीं तो इससे भी बढ़कर पुलिस खुद औरतों पर ही दोषारोपण करने लगती है कि आप इतनी रात में बाहर क्यों निकली? एकाध बार बड़े अधिकारियों को भी ये कहते सुना गया है कि पुलिस सारी औरतों की रक्षा तो नहीं कर सकती।

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आराधना मुक्ति 2009 से ब्लाॅग जगत में सक्रिय है और नारीवादी मुद्दो पर लिखती है। आप जेएनयू में शोधकर्ता है। इनके लेख राष्ट्रीय समाचार समाचार-पत्रों में भी प्रकाशित होते रहे है। आराधना जी को फेसबुक पर Follow करें। 


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