मेरी आंखों में अनेक सपने सजाये है
मैं उड़ती हूॅं तो सोचती एक अच्छा
जीवन मिल जाए।
काशः मैं बोल पाती फिर भी
चू-चू करती इधर-उधर फुदकती रहती हूॅ
मेरे सब साथी यही सोचते
उड़ान तो भर लेते हम पंछी
न जाने हम कहा गुम हो जाते है
है इंसान फिक्र है अगर हमारी
हमें बचा लेना
गर्मी के मौसम में कभी पंछी, कभी इंसान
सब परेशान हो जाते है
बस इस मौसम में
एक छोटा सा आशियाना बना देना
गर्मी के इस साये में पानी भी पिला देना।
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