इस हसीन शहर में बसिए ज़रा | सलिल सरोज

  • Post author:Web Editor
is hasin shahar me badiye

क़त्ल कीजिए और हँसिए ज़रा 

इस हसीन शहर में बसिए ज़रा 
बाँहों में कैद दरिया तो घुट गया
अब दो बूँद पानी को तरसिए ज़रा  
बेवक़्त बरसात होके दूजों तबाह किया
कभी अपने आँगन में भी बरसिए ज़रा  
सुना बहुत ख़ौफ़ में ज़माने में आपका 
फिर तबियत से खुद पे भी गरजिए ज़रा 
सब काम तो खुदा ही नहीं कर देगा  
आप भी हुज़ूर कुछ रात जगिए ज़रा 

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