आजकल मैं बहुत असहाय सा प्रतीत कर रहा हूँ, कहने को तो हम आधुनिकता की तरफ जा रहे हैं किंतु आधुनिकता इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि न गुरू की इज्जत है और न माता-पिता की, तो अब अपरचित व्यक्तियों का तो हाल ही न पूछो आप। जिसकी जो मर्जी वो गाली देना शुरू कर देता है चाहे सामने गुरू हों, माँ-पिता हो, बहन-भाई हो, चाचा-चाची हो या फिर देश और प्रदेश के उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति हो। सभी अपनी झूठी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उपरोक्त व्यक्तियों का मान-मर्दन कर रहे हैं जिसका असर आने वाला भविष्य पुष्पित होने के पहले ही कुम्हला जायेगा। विगत दस वर्षों से गुरू-शिष्य की परंपरा, माता-पिता की अवहेलना इतनी ज्यादा बढ़ गयी है कि मैं यह देख कर अपने मनुष्य होने पर शर्मिन्दगी महसूस कर रहा हूँ। मेरे बहुत से सीनियर आज भी गुरू के सामने बैठते नहीं हैं, उनको देख कर मैं भी उनका अनुपालन करता हूँ।
मुझे यह लिखते हुए अपार दुख और शोक हो रहा है कि शिक्षक अब शिक्षण व्यवस्था को छोड़कर राजनीति करने लगे हैं, वे अब अपने छात्रों को समानुभाव की पाठ नहीं पढ़ाते, वे अब देश के विकास होने की वकालत नहीं करते, वे नवीनता का संचार अपने छात्रों में नहीं करते, उन्हें योग्य बनाने के लिए प्रयत्न नहीं करते, उन्हें माता-पिता की आज्ञा को मानने का सिद्धांत नहीं बताते, अपने छात्रों को भावुकता की शिक्षा नहीं देते, उन्हे जीवन के मूल्यों की जानकारी प्रदान नहीं करते, उन्हें अपरचित व्यक्तियों के साथ मिलकर बौद्धिक समूह बनाने का मार्ग नहीं समझाते, उन्हें देश के उच्च पदों पर बैठे व्यक्तिय़ों की आदर और सत्कार की पाठ नहीं पढ़ाते, उन्हें महान पुरूषों की गाथा कहने में शर्म होती है, ये शिक्षक अब नागरिकों को आदर्श बनाने के लिए प्रतिब्द्ध नहीं हैं। अब शिक्षकों का कार्य समाज में विष घोलना है, जातिवाद को प्रतिपादित करना है, राजनीतिक रोटी सेंकना है, इन्हें देश के उच्च पदों पर बैठे व्यक्तिय़ों का निरादर करना है, महान पुरूषों की गाथा कहने में इन्हें संकोच होती है किंतु जो व्यक्ति देश और समाज को भूतल की ओर ले कर जा रहा है उसकी भूरी भूरी प्रसंसा करनी है। हाय!!! कभी मैंने फिल्मों में सुना था कि एक शिक्षक अपने छात्रों को “इंसाफ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चलके, ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के’’ की बोल सुनाकर अपने छात्रों को देश-समाज और परिवार की विशेषताओं का बखान करता था जिससे नवल नभ के छात्र सहज और सुलभ रूप से वैज्ञानिक, चिकित्सक, इंजिनियर, कलक्टर, वकील, शिक्षक बनकर राष्ट्र को आसमान की बुलंदियों पर ले जाते थे। मैंने इतिहास में पढा था कि भगत सिंह जैसे लाखों युवा देश की आजादी के लिए अपने प्राण को न्योछावर कर दिये थे। उन लोगों को भी उनके शिक्षकों ने ही अच्छे संस्कार दिये, महान पुरूषों की गाथा कहे, देश के उच्च पदों पर बैठे व्यक्तिय़ों की आदर और सत्कार की पाठ पढ़ाये, देश और समाज के हित हेतु आगे बढने की प्रेरणा दिये होगें, तभी तो ऐसे सपूतों ने देश की मर्यादा को बचाये रखा। किन्तु यदि आज ऐसी परिस्थिती आ जाये तो खोजने से भी भगत सिंह जैसे युवा नहीं मिलेंगे, समय रहते अगर इन परिस्थितियों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो निश्चित रूप से कयामत आ जायेगी। मैं आजकल देख रहा हूँ की जिसका जो कार्य है वो अपना कार्य नहीं कर रहा है, शिक्षक अब छात्रों को शिक्षा छोड़कर एकल राजनीति की पाठ पढ़ा रहे हैं। व्यापारी अब व्यापार छोड़कर शिक्षण संस्थान मुहैया करा रहे हैं और अपनी महत्वकाक्षांओं को नवल पीढ़ी के उपर थोप रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी समाज के हितों की सुरक्षा न करके राजनीतिक सुरक्षा दे रही है।
दर्द तो बहुत है मेरे सीने में, किंतु शब्दों की कमी हो जा रही है मुझे लिखने में, अपितु अगले संस्करण मे पुन: लिखने का प्रयत्न्न करूँगा।
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