बहन बन जो दुलार देती तुमको
बेटी बन सोनचिरैया सी खुशियां बांटती
वह गृहलक्ष्मी घर संवारकर तुम्हारा
माँ बन स्तनों से ममता लुटाती
पिफर क्यों बंदिशों और बेडि़यों से जकड़ा उसे
क्यों नहीं बराबर मर्द और औरत का रिश्ता
क्यूँ दम्भी पुरुष समाज में दर्जा उसका नीचा
माना जाता क्यों उसे अपवित्र
माँ का नाम बालक के लिए क्यों नहीं है वैध्
क्यों रज दौरान स्त्री मंदिर में नहीं कर सकती प्रवेश
कैसा ये दोगला समाज और कैसा है ये देश
ईश्वर की प्रदान स्त्री को नियामत है ये
इससे ही तुम जैसा पवित्र पुरुष माँ की कोख में
तथाकथित पवित्र अहंकारी शरीर का निर्माण करता
अपवित्र स्त्री देह से जन्मे तुम पिफर कहाँ रहे पवित्र
ताकतवर जिस्म का निर्माण कर मर्दानगी दिखाते हो
अरे दानवो शर्म करो ना कहो उस देवी को अपवित्र
व्हॉटसएप पर जुड़ें : उड़ान हिन्दी पर प्रकाशित नई पोस्ट की सूचना प्राप्त करने के लिए हमारे ऑफिशियल व्हाट्सएप चैनल की नि:शुल्क सदस्यता लें। व्हॉटसएप चैनल - उड़ान हिन्दी के सदस्य बनें
कॉपीराइट सूचना © उपरोक्त रचना / आलेख से संबंधित सर्वाधिकार रचनाकार / मूल स्रोत के पास सुरक्षित है। उड़ान हिन्दी पर प्रकाशित किसी भी सामग्री को पूर्ण या आंशिक रूप से रचनाकार या उड़ान हिन्दी की लिखित अनुमति के बिना सोशल मीडिया या पत्र-पत्रिका या समाचार वेबसाइट या ब्लॉग में पुनर्प्रकाशित करना वर्जित है।