अकर्मण्यता | सलिल सरोज

  • Post author:Web Editor
akarmyata

ये तुम्हारी जड़ता 

तुम्हारी अकर्मण्यता 
एक दिन उत्तरदायी होंगी 
तुम्हारे ह्रास का  
और 
कठघरे में खड़ी होंगी 
और 
जवाब देंगी 
सृष्टि के विनाश का 
परिस्थतियाँ खुद नहीं बदल जाती हैं 
या 
सम्भावनाएँ यूँ ही नहीं विकसित हो जाती हैं 
पूरी की पूरी 
एक नस्ल 
एक पीढ़ी को 
अपनी आहुति देनी पड़ती है 
और 
तैयार करनी पड़ती है 
अगली पीढ़ी के लिए वो संस्कार 
जिनके हम कुपोषित है 
और 
पैदा करनी पड़ती हैं संस्कृति की फसल 
जिसे हम रौंदते जा रहे हैं 
और 
नियंत्रित करना पड़ता है 
खुद के अभिमानों को 
जिसने तय कर दी हैं हमारी क्षमताएं 
जिससे आगे हम सोच नहीं पाते 
समझ  नहीं पाते 
और 
बिलबिलाते हैं किसी कीड़े की तरह 
एक रोज़ यूँ ही घुटन से मर जाने के लिए 
हम दोषी है 
अपनी अगली पीढ़ी के 
जिसका भविष्य हम खा चुके हैं
जिसकी नसों का खून तक पी चुके हैं
और  

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